Wednesday 19 February 2014

Theory Of Relativity (सापेक्षता का सिद्धांत)




                     
नमस्कार  आज हम अल्बर्ट आइंस्टीन के सापेक्षता के सिध्दांत के बारे में जानेंगे लेकिन उससे पहले खगोलशास्त्र और भौतिकशास्त्र को थोडा शुरवात से जान लेते है तो हम शुरू करते है टोलेमी से. इस खगोलशास्त्री ने हमें बताया था कि धरती इस सूर्यमाला का केंद्रबिंदु हैं और
सूरज इसका चक्कर लगाता है ये सिद्धांत कई शताब्दी तक चलता रहा लेकिन उसके बाद निकोलस कोपरलिक्स नाम के इस वैज्ञानिक अपने प्रयोगो द्वारा ये पाया कि धरती सूर्यमाला का केंद्रबिंदु ना होकर सूरज इसका केंद्रबिंदु है और धरती सूरज का चक्कर लगाती है जिसका आगे चल कर केप्लर इस वैज्ञानिक ने समर्थन दिया और साथ कि साथ ये सिद्धात प्रतिपादित किया कि बाकी ग्रह भी धरती कि तरह सूरज का चक्कर लगाती है। ....  फिर उसके बाद आया गलेलिओ. गलेलिओ ने भी इस बात को आगे बढ़ाकर इसमें और सुधार किये। उसके बाद न्यूटन ने गुरुत्वाकर्षण शक्ति का शोध लगाया और साथ ही साथ उस ज़माने में प्रसिद्ध क्लासिकल थेअरी ऑफ रीलेटिविटी से ये बताया कि किसी भी स्थायी अथवा गतिशील माध्यम में भौतिकशास्त्र के नियम नही बदलेंगे मतलब स्थान और समय जैसेके तैसे ही रहेंगे। . ये था भौतिकशास्त्र और खगोलशास्त्र
अब यहाँ बात करेंगे सापेक्षता के सिद्धांत के बारे में आइंस्टीन के इस सापेक्षता के सिद्धांत में २ भाग है एक विशेष सापेक्षतावाद और जनरल सापेक्षतावाद अब हम विशेष सापेक्षतावाद से शुरू करने वाले तो इस विशेष सापेक्षतावाद में ३ कॉन्सेप्ट है 1.रीलेटिविटी ऑफ़ स्पेस 2.रीलेटिविटी ऑफ़ टाइम और ३ 1.रीलेटिविटी ऑफ़ मास
अब जैसा कि  हमने पहले देखा कि न्यूटन ने हमने बताया था कि किसे भी स्थायी और गतिशील अवस्था में भौतिकशास्त्र के नियम यानि स्पेस और टाइम नही बदलेंगे जो कि सोहलवीं सदी से लेकर उन्नीसवी सदी के अंतिम दशक तक कायम रहा लेकिन तब तक जबतक मैक्सवेल ने हमें ये नही बताया कि एक ऐसे गति भी है जो कि स्थिर है और वो है - प्रकाश की गति  इसी बात के आधार पर आइंस्टीन ने अपना सापेक्षता का सिद्धांत प्रतिपादित किया.
तो सबसे पहले हम बात करेंगे रीलेटिविटी ऑफ़ टाइम के बारे में
इसमें हमे आइंस्टीन ने बताया हे कि वक़्त भी धीमा हो सकता है  पर ये बात इतनी विचित्र और अजीबोगरीब है कि हम समज ही नही पाते और अक्सर हमारा दिमाग इस बात को मानने के लिए इंकार कर देता है.पर
यकीन मानिये ऐसा हो सकता हैं. लेकिन वक़्त कैसे स्लो यानि धीमा हो सकता है. इस बात को समज ने के लिए मैं आपको एक उदहारण देता हु आप मेरे इस उधारण पर गौर से देखिये और समझिये जिससे आपको टाइम कैसे धीमा हो सकता है ये आसानी से समजेगा मान लीजिये कि आपको एक स्थान से दूसरे स्थान जाना है. जो कि आप अपने बाईक से जाने वाले है आपको ४० कि स्पीड से १० मिनिट का वक़्त लगने वाला है तो सोचिये कि आप ने अपनी बाईक क़ी स्पीड ८० कर दी तो कितना वक़्त लगेगा जाहिर सी बात है जब आपने स्पीड बड़ा दी है तो वक़्त कम लगेगा एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए मतलब आप ने बाइक कि स्पीड ८० क़ी तो वक़्त ५ मिनिट लगेगा क्योकि  कि ४० कि  स्पीड से १० मिनिट का वक़्त लगता हैं  ठीक है तो अब आप अपनी बाइक को ८० के डबल यानि १६० कि स्पीड से दौड़ाये तो वक़्त उससे भी आधा लगेगा यानि सिर्फ ढाई मिनिट लगेगा  अब अपनी बाईक को १६०+१६० यानि ३२० कि स्पीड से दौड़ाइये। . यानि आपको १६० वाली स्पीड के मुताबिक ढाई मिनिट के हिसाब से डेड मिनिट लगेगा. अब आप ऐसा सोचो कि आपकी बाइक ३००००० कि स्पीड से चल रही है तो आपको एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए कितना वक़्त लगेगा हम जानते है कि एक बाइक इतने स्पीड चलना असम्भव हैं लेकिन एक इस दुनिया  में एक ऐसे स्पीड यानि गति भी हैं जो कि ३००००० कि मी पर सेकंड हैं वो हैं प्रकाश कि गति और  अगर आप किसे ऐसे अंतरिक्ष यान में बैठे जो कि प्रकाश कि गति से चलता हो तो जब आप प्रकाश  कि गति से अंतरिक्ष से पूरा एक साल चक्कर लगा के धरती पर वापस  आयेंगे तो आपको लगेगा कि धरती पर भी एक ही साल हो गया हैं पर धरती लाखो करोडो साल गुजर चुके होंगे और. अल्बर्ट आइंस्टीन ने पहले ही बता दिया हैं कि टाइम के इस धीमेपन को हम तभी महसूस क्र सकते हैं जब हम किसी ऐसे गति से चले जो कि प्रकाश की गति के करीब हो। जबकि हमारे आम जीवन में दुनिया की सबसे तेज चलने वाली रेलगाड़ी भी हमें ये अनुभव नहीं दिला सकती क्योंकि उसकी गति 3 लाख कि.मी. /सेकेंड वाली प्रकाश की गति की तुलना में रत्ती मात्र भी नहीं। जो रेलगाड़ी कि सिर्फ १ या डेड घंटा ५०० कि मी के आसपास चलती हैं..  और प्रकाश कि गति ३००००० किमी पर सेकंड. यही कारण है कि  समय की सापेक्षता को हम आम जिंदगी में महसूस नहीं कर पाते।  और शायद कभी कर भी नही पाएंगे क्यों कि हम इंसानो के लिए प्रकाश कि गति से चलने वाले किसे चीज को बनाना लगभग नामुमकिन हैं..  और इस बात का महत्वपूर्ण प्रयोग तब हुआ जब १९७७ में नासा ने  सेटेलाइट पर २ घड़िया छोड़ी जो पृथ्वी का चक्कर लगाकर  जब वापस आये तो उन घड़ियों की पिंग पृथ्वी पर चलने वाली  घडी कि तुलना में धीमी जाना चाहिए थी और ऐसा हुआ  जो कि सापेक्षता के अनुसार सही ही था ..
अब हम यहाँ से बात करेंगे रीलेटिविटी ऑफ़ स्पेस कि यानि अंतर के सापेक्षता कि अगर अंतरिक्ष में दो वस्तुएँ एक-दूसरे से एक किलोमीटर दूर हैं और उन दोनों में से कोई भी न हिले, तो वे एक-दूसरे से एक किलोमीटर दूर ही रहेंगी। हमारा रोज़ का साधारण जीवन भी हमें यही दिखलाता है। लेकिन आइनस्टाइन ने कहा कि ऐसा नहीं है।   स्थान खिच और सिकुड़ सकता है। ऐसा भी संभव है कि जो दो वस्तुएँ एक-दूसरे से एक किलोमीटर दूर हैं वे स्वयं न हिलें, लेकिन उनके बीच का अंतर  कुछ परिस्थितियों के कारण फैल कर सवा किलोमीटर हो जाए या सिकुड़ के पौना किलोमीटर हो जाए। लेकिन हम स्पेस कि इस सापेक्षता को भी तभी महसूस कर सकते हैं जब किसी दो चीजो के स्पेस में प्रकाश कि गति के आसपास कि गति का प्रभाव हो
अब हम बात करेंगे रीलेटिविटी ऑफ़ मास कि यानि E=mc2 ये रीलेटिविटी ऑफ़ मास का फार्मूला हैं जिसके आधार पर वैज्ञानिकोने अँटमबम बनाया  E=mc2 इसका पूरा वाक्य  E  मतलब ENERGY  और M यानि MASS  और C यानि प्रकाश का वेग और इसका मतलब हैं energy (ऊर्जा) में, और Energy, mass में बदल सकती है। और आइंस्टाइन ने हमें बताया कि mass भी relative है और किसी वस्तु की गति बढ़ने से उसका mass भी बढ़ेगा। पर वो गति भी प्रकाश कि गति हो या उसके आसपास हो इसका मतलब ये नही होता कि किसी गति बढ़ने से उसका आकर भी बढ़ेगा बल्कि उस चीज कि ऊर्जा निर्माण करने कि वृद्धि बढ़ेगी ..


अब हम सापेक्षता के दूसरे भाग यानि General Theory of Relativity के बारे में जानेंगे जिसे हम सामान्य सापेक्षतावाद और व्यापक सापेक्षतावाद के नाम से भी जानते हैं.
इस सापेक्षतावाद में  आइंस्टीन ने हमे ये बताया कि गुरुत्वकर्षण कैसे और क्यों काम करता हैं जो हैं। . और ये उनकी दूसरे क्रन्तिकारी अवधारणा थी
पर बात ये हैं कि जिस तरह आइंस्टीन अपना विशेष सापेक्षतावाद का सिद्धांत प्रकाश के गति के स्थिर मान के आधार पर प्रस्थापित किया था उसी तरह किस बात के आधार पर आइंस्टीन ने अपना ये दूसरा सिद्धांत प्रस्थापित किया था.
मान लीजिये  कि सूर्य नष्ट हो गया है तो हमें इसका पता आठ मिनट बाद लगेगा क्योंकि सूर्य की रोशनी धरती तक पहुंचने में आठ मिनट लेती है। पर न्यूटन के अनुसार gravity का प्रभाव तात्कालिक होता है इसलिए सूर्य के गुरूत्वाकर्शण प्रभाव के नष्ट होने का पता तुरंत यानि प्रकाश के धरती पर पहुंचने से पहले ही लग जाना चाहिए जो कि विशेष सापेक्षतावाद के मूलभूत सिद्धांत से मेल नहीं खाती। इसके अनुसार कोई भी Physical Intaraction या परिणाम प्रकाश की गति से ज्यादा तेजी से सफर नहीं कर सकता। इसी विरोधाभास ने आइंस्टाइन को न्यूटन की गुरूत्वाकर्शण की अवधारणा पर पुनः सोचने के लिए मजबूर कर दिया।
आइंस्टीन ने हमे इस सिद्धात कुछ और नही बल्कि गुरुत्वकर्षण के बारे बताया हैं उन्होंने बताया है कि गुरुत्वाकर्षण के प्रभाव में आने वाली हर चीज में मोड़ हैं इस बात को समजने क लिए आप ऐसा कीजिये आप कोई भी चीज ऊपर फेकिये आपको वो चीज जब निचे गिरेगी तो आप इस बात पर ध्यान दे कि वो चीज एकदम  सीधी लाइन में निचे नही गिरती थोड़ी तिरछे यानि मुड़ के गिरती हैं और गुरुत्वाकर्षण के वजह से  ब्रम्हांड में हर जगह मोड़ हैं
और ये बात हमारे धरती और सूरज के बिच भी लागु होती हैं. इस वजह से आइंस्टाइन के इस सिद्धांत ने न्यूटन के गुरूत्वाकर्षण के नियमों को भी चुनौती दी।  क्योंकि आइंस्टाइन के मुताबिक सूर्य के चारों तरफ  घूमने वाले ग्रह गुरूत्वाकर्षण के वजह से मुड़े हुए स्पेस के वजह से सूरज का चक्कर लगाते हैं, ना कि सूर्य की गुरूत्वाकर्षण शक्ति की वजह से उसके चारों तरफ घूमते हैं। हालांकि उसकी कल्पना करना जरा मुश्किल है, पर इसे एक तरीके से अच्छी तरह समझा जा सकता है। 

एक रबर  की शीट  लें जिस पर कुछ vertical और horizontal lines खींची हों। शिट  को खिचे और उसके बीच   में एक बड़ी गेंद रख दें। हम देखेंगे की गेंद के पास जो लाइने हैं वो थोड़ी तिरछी दिखाई देंगी और sheet में एक मोड़ यानि  curve पैदा हो जाएगा। अब हम जब एक दूसरी गेंद इस सतह पर डालेंगे तो वो उस curve की वजह से बड़े गेंद के पास चली जाएगी।
अब हम इस सिद्धांत से जुडी हुए कुछ  महत्पूर्ण बाते करते हैं.
इस सिद्धांत के बारे में एक ही महत्वपूर्ण बात हैं कि हम लोगो इस सिद्धांत को समजने में बहुत कठिनाई होती हैं. तो अब हम ये जानेंगे कि इस सिद्धांत को समजनेमे कठिनाई क्यों होती हैं
अक्सर हम जब इस सिद्धांत के बारे में इंटरनेट पर या किसे किताब में पड़ते हैं तो सामान्यता कुछ बाते लिखी होती हैं कही लिखा होता कि आइंस्टीन ने सापेक्षता के सिद्धांत  हमे बताया की समय भी धीमा हो सकता हैं
तो किसे लेख में लिखा होता हैं कि आइंस्टीन ने कहा था कि किसी वस्तु का वेग बढ़ने से उसका आकर भी बढ़ेगा
और किसे लेख में ये लिखा होता हैं कि आइंस्टीन के इस सिद्धांत कि वजह से एटम बम्ब बनाया गया
और कही लिखा होता हैं कि दो वस्तुओ के बिच कि दुरी भी कम हो सकती हैं या बड़ सकती और कही लिखा होता हैं कि इस सिद्धांत के अनुसार समय यात्रा सम्भव हैं और कही लिखा होता हैं कि आइंस्टीन ने हमे बताया कि स्पेस में मोड़ हैं. 
और इतनी बाते पड़ने के बाद हम हम ये सोच कर कन्फ्यूज हो जाते है कि इस सिद्धांत से एटम बम्ब बनना और समय का स्लो होना इनका एकदूसरे क्या सम्बंद हैं दरअसल बात ये कि सीधे तौर पर इन सब बातो का एक दूसरे से कोई संबंध नही हैं ये सब सापेक्षता के सिद्धांत के अलग अलग कॉन्सेप्ट हैं
अगर आप ये कही पढ़ते हैं कि इस सिद्धांत कि वजह से एटम बम्ब बनाया गया तो वो रीलेटिविटी ऑफ़ मास से जुड़ा हुआ हैं जिसका समीकरण E=mc2 हैं और आप ये पड़ते हैं कि आइंस्टीन ने हमे बताया कि समय भी धीमा हो सकता हैं. या समय यात्रा के बारे में पड़ते है तो वो उनके रीलेटिविटी ऑफ़ टाइम इस कॉन्सेप्ट से जुड़ा हुआ हैं 
और अगर ये कही पड़ते हैं कि आइंस्टीन ने हमे ये बताया कि २ वस्तुओ के बीच का अंतर भी कम हो सकता हैं तो वो उनके रीलेटिविटी ऑफ़ स्पेस इस कॉन्सेप्ट से जुड़ा हुआ हैं
और अगर आप ये कही पड़ते हैं कि आइंस्टीन ने हमे ये बताया कि काल अंतराल में मोड़ हैं तो ये बात उनके व्यापक सापेक्षतावाद से जुडी हैं जो कि उनके विशेष सापेक्षतावाद से तीनो कॉन्सेप्ट से अलग हैं और हम इन सब बातो भिन्नता को अक्सर एकदूसरे से जोड़ देते हैं और बाद में हमे सापेक्षता के सिद्धांत को समजने में कठिनाई होती हैं.
और दो महत्वपूर्ण बाते इस सिद्धांत के बारे में
1] कभी कभी ये भी हम पड़ लेते हैं कि आइंस्टीन ने समय को चौथा आयाम कहा गया हैं तो ये भी एक अलग बात हैं. वक़्त को चौथा आयाम इसलिए कहा जाता हैं. जिस तरह किसे भी स्थाई अवस्था का मापन करने क लिए लम्बाई चौड़ाई और ऊंचाई कि जरुरत होती हैं उसी तरह किसी भी गतिशील  अवस्था का मापन करने क लिए हम समय का उपयोग करते हैं ये एक महत्वपूर्ण कारण कि वक़्त को चौथा आयाम कहा गया हैं
2] और आइंस्टीन के विशेष सापेक्षतावाद के अनुसार इस दुनिया में प्रकाश कि गति से अधिक तेज और दूसरे कोई गति नही है. और ये बात उनके विशेष सापेक्षतावाद का मुलभुत आधार भी हैं. और प्रकाश कि गति ३००००० किमी पर सेकंड होती हैं

इस विडियो क्लिप ko भी देखे :- http://www.dailymotion.com/video/x1950fx_theory-of-relativity-sourabh-potpose_tech